HARYANA/HISAR MASS MURDER CUM SUICIDE STORY : हरियाणा के हिसार जिले में एक ऐसी घटना हुई, जिसने सही मायने में ये सोचने को मजबूर कर दिया कि आखिर जीवन में जो लोग हार मान जाते है, उनकी मनोस्थिति कैसी होती है और ये भी सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या सिर्फ खुदकुशी करना ही हल है, इसके अलावा कोई और हल नहीं है।
बात करते हैं गांव नंगथला की। पर्यावरण प्रेमी रमेश ने पत्नी, दो बेटियों व बेटे की हत्या करने के बाद खुदकुशी कर ली। उसने लंबा सुसाइड नोट भी लिखा। आईए आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते है कि आखिरी वक्त में रमेश के दिमाग में क्या विचार चल रहे थे और उसके पीछे वजहें क्या थी ?
Suicide Note
...जब कमरे की दीवार पर चॉक से लिखी मौत की डायरी
Crime News in Hindi : उसने अपने कमरे की दीवार पर चोक से रमेश ने कथित रूप से लिखा, ''सब सो रहे हैं, अब शांति है।'' शायद उसने घटना को अंजाम देने के बाद ये लिखा होगा। पुलिस के मुताबिक, अपनी पत्नी व बच्चों को मारने के बाद रमेश ने उन पर रजाई ओढ़ा दी ताकि किसी को कोई शक न हो और उसके बाद अंदर के दोनों कमरों के दरवाजे खुले छोड़ दिए और बाहर का मेन गेट बंद कर निकल गया।
रमेश ने लिखा, ''सड़क पर जा रहा हूं, शरीर का बोझ खत्म करना है। सुबह के चार बजे चुके हैं। घर से निकल चुका हूं। इतनी सर्दी में सबको परेशान करके जा रहा हूं, माफ करना, सबसे माफी।'' यह वह आखिरी दो लाइने हैं जो रमेश वर्मा ने अपनी दो बेटियों, बेटे, पत्नी की हत्या के बाद आत्महत्या करने से पहले लिखी।
मौके पर पुलिस जांच करती हुई
Haryana Crime News : इस घटना की सूचना मिलने पर सोमवार सुबह पुलिस जब रमेश वर्मा के घर पहुंची तो कॉपी पर लिखा सुसाइड नोट बरामद हुआ। पुलिस के अनुसार , रमेश ने 4 से 4:30 बजे के बीच किसी वाहन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। मौके पर वाहन के टायर के कई मीटर तक रगड़ के निशान हैं, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि चालक ने हादसे से बचने का प्रयास किया।
11 पेज के सुसाइड नोट में रमेश ने लिखा
''आप सब से माफी जयदेव जी बहुत दुख दे रहा हूं लेकिन मासूम भी भोली भी सविता और नादान बच्चों को बेरहम दुनिया में अकेला नहीं छोड़ सकता इनको भी साथ ले गया हूं। संदीप से भी माफी पिछले साल आपको बताया था लेकिन ये सब होना ही था।''
... आपका रमेश
'जो यह नोट पढ़ रहा है मुझे अपराधी न समझे'
'मुझे मोक्ष चाहिए : रमेश
रमेश ने लिखा, ''मुझे मोक्ष शांति चाहिए थी। जो भी पढ़ रहा है मुझे अपराधी न समझे रात के 11 बज चुके हैं न दुख है, न डर, न सर्दी लग रही है पता नहीं चला। 2 घंटे लगे सब करने में सबको नींद की गोलियां दी है। आज मेरी लिखाई भी बदली बदली है जो भी किया कोई अचानक हुई घटना है ऐसा नहीं है न कोई डर था न कर्ज है। 50 हजार तक कमा रहा हूं जिंदगी के सब सपने पूरे कर चुका हूं लेकिन हुआ क्यों।''
रमेश को वन्यजीवों से प्यार था
संन्यासी बनना चाहता था पर गृहस्थी से निकल नहीं सका
रमेश ने आगे लिखा, ''मैं बचपन से सबसे अलग था जब होश संभाला तो संसारिक सुख की बजाय दुनिया को अलग नजर से देखता। दुनिया की असलियत को समझता। मेरा मन पिछले 15 साल से सन्यासी था मैं मोक्ष मुक्ति चाहता था।
मगर गृहस्थी से निकल नहीं सका। धीरे-धीरे मेरा दिमाग बदलता गया। मेरी सविता भी मेरी तरह ही बस जो है उसी में खुश थी। खैर हमने भाई को माफ कर दिया मैं तो फकीरी में सन्यासी बनकर जी रहा था। पत्नी ने मेरी हां में हां मिलाई, आखिरी समय तक साथ देगी। पिछले 10-15 साल में कई बार घर से निकल सन्यास लेने की सोच चुका था मगर 2 साल पहले हुए हादसे ने बहुत जल्दी मजबूत कर दिया शरीर कमजोर हो चुका था।
गले में बहुत दिक्कत थी। सांस लेने में खाने में सोने में बोलने में दिमाग भी बिल्कुल शांत हो रहा था। पिछले साल मैंने सबसे सन्यास मांगा मुझे मुक्ति दे दो। मैं अक्सर बीवी के आगे रोता था मुझे जाने दो मगर वो रोक लेती थी। आखिर 4-5 दिन पहले दिमाग ने हार मान ली। पत्नी को बताया उसने मेरी हां में हां मिलाई और आखिरी समय साथ रहने की बोली।''
मृतक रमेश
रमेश ने अपनी आखिरी इच्छा तो पूरी कर ही ली थी। यानी मौत को गले लगा लिया था। साथ साथ उसकी कुछ और इच्छाएं भी थी। वो थी
'अस्पताल से सीधे श्मशान ले जाया जाए।'
'परिवार में कोई नहीं संन्यासी हो चुका हूं, अब पीछे कोई नहीं है रोने वाला।'
'अस्थियां हरिद्वार की बजाय श्मशान के पेड़ पौधों में डाल दी जाएं।'
'मेरे घर को हमेशा बंद रखा जाए, मेरी आत्मा यहीं शांति से रहेगी।'
'दुकान का सामान बेचकर किसी का बकाया है उनको दे दिया जाए बाकि सब कबाड़ में बेचकर दान कर देना।'
'मुझे सन्यासी की तरह विदा करें बस कुछ छोड़ रहा हूं। पीछे से कोई नहीं छोड़ गया हूं जो है वो सब मेरे साथ जा रहा है।'
और रमेश ने लिखा, ''मैं कोई मानसिक रोगी नहीं हूं बस शांति चाहता हूं।''
अब पुलिस के पास जांच के नाम पर सिर्फ सुसाइड नोट है और कुछ नहीं। क्या वाकई सच सामने आएगा, ये कह पाना बेहद मुश्किल है।
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