अफगानिस्तान की राजधानी काबूल पर काबू पाते ही तालिबान रातोंरात अमीर हो गया। लेकिन इसके बावजूद तालिबान इन पैसों को हाथ नहीं लगा सकता है।
तालिबान के सामने जितनी बड़ी चुनौती अफगानिस्तान पर काबू करना था उससे बडा चैलेंज वहां की अर्थव्यवस्था को ढंग से चलाना भी है।अफगानिस्तान पर पूरी तरह कंट्रोल कर लेने के बाद देश को चलाने के लिए पैसा एक बड़े संकट के रूप में सामने आ रही है।नियंत्रण को और बल मिले जिसके लिए पैसा सबसे जरुरी पार्ट है। ऐसे में देश पर प्रभावशीलता के बावजूद तालिबान की सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के अरबों डॉलर तक पहुंच नहीं है जो इस उथल-पुथल के दौर में देश को चलाता रहता।
इन पैसों पर अमेरिका या अंतराष्ट्रीय संस्थानों का डायरेक्ट कंट्रोल हैं। वैसे इस नज़र से ये सौदा फायदे का है कि राजधानी काबुल के हवाई अड्डे से लोगों को (खासकर विदेशियों को) निकालने का तनावपूर्ण कार्य चल रहा है।
अमेरिका अगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी कैसे भी कर के चाहता है जिसके लिए उसने 31 अगस्त की समय सीमा तय की है। उससे पहले वहां से हजारों लोगों को निकालना है।लेकिन तालिबान के पास इन पैसों को सभालने के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है, यानी की तालिबान के सामने वहां की अर्थव्यवसथा को चलाने में खड़ी एक बड़ी समस्या में से एक होने का ये एक इशारा है जो कि तालिबान के सामने अर्थव्यवसथा को चलाने के में खड़ी हो सकती है। वैसे भी अफगान अर्थव्यवस्था अब है और फिछले 20 साल की तुलना में तिगुणी है जब तालिबान शासन में था।
इस कमी से आर्थिक संकट पैदा हो सकता है जो कि तालिबान में रह रहे 3.6 करोड़ अफगानों के लिए मानवीय संकट गहरा कर सकता है जिनके देश में ही रूकने की पूरी की संभावना है। अफगान रणनीति पर अमेरिका सरकार को सलाह देने वाले एंथनी कोर्ड्समैन ने कहा, '' यदि उनके पास काम नहीं होगा तो वे लोगों का पेट नहीं भर पायेंगे। तालिबान को जवाब ढूंढना होगा।
फंसी हुई रकम अमेरिका के लिए तालिबान पर दबाव बनाने का एक रास्ता हो सकता है । कोर्ड्समैन ने कहा, 'दबाव बनाने के लिए आपको उन तरीके पर सौदेबाजी के लिए इच्छुक होना होगा जिसे तालिबान एकसेप्ट कर सके।
बता दें कि बीते रविवार यानी की 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमा लिया था। अब वहां उन्हीं का कानून चलेगा.