
दिन-15 सितंबर
जगह- थाना मुरादनगर,ग़ाज़ियाबाद
आख़िरी बार वो 8 सितंबर को अपने घर से किसी से मिलने जाने की बात कह कर निकला था, लेकिन इसके बाद लौट कर नहीं आया. चूंकि लड़के को गायब हुए अब काफ़ी वक़्त गुज़र चुके थे और उसके पिता इतने रोज़ बाद थाने पहुंचे थे, तो पुलिस का उनसे ये पूछना लाज़िमी था कि आख़िर उन्होंने अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने में इतनी देर क्यों की? इसके जवाब में बृजेश त्यागी ने बताया कि पहले तो वो अपने तौर पर ही बेटे को ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे थे और जब उन्होंने रिपोर्ट लिखवाने की बात कही, तो उनके छोटे भाई लीलू त्यागी ने भी रिपोर्ट लिखवाने की जगह खुद ही बच्चे को ढूंढने की बात कही थी.
बहरहाल, पुलिस ने रिपोर्ट लिख कर मामले की तफ्तीश शुरू कर दी. तफ्तीश की शुरुआत गायब ऋषु के मोबाइल फ़ोन की लोकेशन और उसकी कॉल डिटेल्स निकलवाने से हुई. इसी दौरान पुलिस को ये भी पता चला कि गायब ऋषु के पिता बृजेश त्यागी कहीं ना कहीं अपने बेटे की गुमशुदगी के पीछे अपने ही भाई लीलू त्यागी पर भी शक करते हैं. बृजेश को लगता था कि उनका बेटा शायद आख़िरी बार उनके भाई लीलू के साथ ही देखा गया था और वही पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने से भी मना कर कर रहा था. जब पुलिस को ये बात पता चली तो उसने बड़ी ख़ामोशी से अपनी तफ्तीश की सुई लीलू त्यागी पर ही टिका दी. अब पुलिस ने लीलू के मोबाइल फ़ोन की लोकेशन और उसकी कॉल डिटेल्स निकलवाई. तब पुलिस को एक चौंकानेवाली बात नज़र आई.
पुलिस ने देखा कि आठ सितंबर को जिस रोज़ ऋषु त्यागी अपने घर से गायब हुआ था, उस रोज़ उसकी लोकेशन मुरादनगर में जिस जगह पर थी, उसके चाचा लीलू त्यागी की लोकेशन भी ठीक उसी जगह पर थी. यानी आठ सितंबर को दोनों एक साथ थे.दूसरी बात ये कि उस रोज़ दोनों का मोबाइल फ़ोन एक ही साथ स्विच्ड ऑफ़ हो गया था. शाम को चाचा लीलू त्यागी का मोबाइल फ़ोन तो उसके घर के पास स्विच्ड ऑन हो गया, जबकि भतीजे ऋषु का फोन ऑन नहीं हुआ. अब पुलिस को भी लीलू पर शक होने लगा. पुलिस ने उसके बारे में थोड़ी और जानकारी जुटाई और आख़िरकार उसे हिरासत में ले लिया. पुलिस ने अब लीलू त्यागी का मोबाइल फ़ोन अपने कब्ज़े में ले लिया था और पूछताछ कर रही थी. लेकिन लीलू लगातार अपने भतीजे की गुमशुदगी से खुद को बेख़बर बता रहा था.
तभी पुलिस को एक ऐसी चीज़ हाथ लगी, जिसने लीलू की पोल खोल कर रख दी. पुलिस को लीलू के फ़ोन में एक रिकॉर्डर मिला, जिसमें सारी बातचीत रिकॉर्ड होती थी. लीलू ने अपने फोन में रिकॉर्डर तो रखा था, लेकिन उसे नहीं पता था कि एक रोज़ यही रिकॉर्डर उसके लिए मुसीबत बन जाएगा. पुलिस ने सुना कि लीलू त्यागी उन्हीं दिनों किसी से फ़ोन पर ना सिर्फ़ ऋषु के क़त्ल की पूरी साज़िश डिस्कस कर रहा था, बल्कि पुलिस से बचने के लिए क्या करना है और क्या नहीं, इसके बारे में भी चर्चा कर रहा था. यकीनन ये लीलू त्यागी के खिलाफ़ एक बड़ा सबूत था और पुलिस ने इस सबूत की बिनाह पर उसे अपने ही भतीजे के क़त्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार कर लिया. अब सवाल ये था कि आख़िर लीलू ने ऋषु का क़त्ल कैसे किया और क्यों किया?
पूछताछ में लीलू ने माना कि आठ सितंबर को वही बहला फुसला कर भतीजे ऋषु त्यागी को अपने साथ लेकर गया था और फिर अपने दो साथियों के साथ मिल कर उसने पहले तो उसकी गला घोंट कर हत्या की. फिर उसकी लाश को मुरादनगर के ही गंगनहर में फेंक दिया. इस क़त्ल में उसके साथ यूपी पुलिस का ही एक रिटायर्ड दरोगा सुरेंद और उसका नौकर राहुल भी शामिल था. अब पुलिस तीनों को गिरफ्तार कर चुकी थी. लेकिन लाख कोशिश के बावजूद ऋषु की लाश बरामद नहीं हो सकी, क्योंकि लाश तो कब की नहर में बहती हुई आगे निकल चुकी थी. एक बारगी ये लगा कि अब ये मामला यहीं ख़त्म हो गया. लेकिन असली कहानी यहीं से शुरू हुई.
अब जब ऋषु के क़त्ल के इल्ज़ाम में उसी के चाचा लीलू त्यागी गिरफ्तार हो चुका था. त्यागी परिवार को एक-एक कर गायब हुए या मारे गए अपने परिवार के चार और मेंबर्स की याद आने लगी. इनमें से तीन लोग तो हमेशा के लिए कहीं गायब हो चुके थे और उनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. जबकि एक बच्ची की मौत घर में कोई ज़हरीली चीज़ खाने से हुई थी और तब उसकी मौत पर किसी को कोई शक भी नहीं हुआ था. अब घरवालों को लगने लगा कि कहीं इन लोगों की गुमशुदगी और मौत के पीछे भी लीलू त्यागी का ही हाथ तो नहीं है. लिहाज़ा, घरवालों की शिकायत पर ही पुलिस ने लीलू से इन मामलों पर भी पूछताछ शुरू की. शुरुआत 20 साल पुरानी पहली गुमशुदगी से हुई, जब लीलू त्यागी के ही बड़े भाई सुधीर त्यागी अचानक एक रोज़ कहीं गायब हो गए थे और फिर किसी को ढूंढे नहीं मिले.
तफ्तीश शुरू हुई और जो कहानी सामने आई उसने हर किसी को रौंगटे खड़े कर दिए. लीलू त्यागी ने अपनी जो कहानी सुनाई, वो एक साइलेंट सीरियल किलर की कहानी थी. बीस सालों में ये उसका पांचवां क़त्ल था. उसने माना कि पिछले बीस सालों में उसी ने एक-एक कर अपने चार और फैमिली मेंबर्स की जान ली और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दी. लेकिन फिर सवाल ये था कि आख़िर एक शख्स अपने ही परिवार के लोगों का यूं एक-एक कर क़त्ल क्यों कर रहा था? आख़िर अपने ही घर के लोगों से उसकी ऐसी क्या दुश्मनी थी? आख़िर कोई इतना बड़ा ग़द्दार और बेरहम कैसे हो सकता था? और सबसे अहम ये कि इतने सालों तक वो एक-एक कर अपने ही घरवालों की जान लेता रहा और किसी को उस पर शक क्यों नहीं हुआ?
अब साइलेंट सीरियल किलर लीलू के हाथों से किए गए क़त्ल की पूरी कहानी आपको बताते है.
उसने बताया कि उसने क़रीब साल पहले अपने सगे बड़े भाई सुधीर त्यागी का क़त्ल किया. उसने सुधीर त्यागी के लिए क़त्ल के लिए बाक़ायदा किराए के क़ातिलों को एक लाख रुपये की सुपारी दी थी. सुपारी किलर्स ने सुधीर त्यागी की जान ली और लाश गंगा नहर में बहा दिया. ना तो किसी को कानों-कान ख़बर हुई और ना ही किसी को कुछ पता चला. लोगों को लगा कि सुधीर त्यागी कहीं चले गए हैं और बात आई-गई हो गई. सुधीर त्यागी के परिवार में उनकी बीवी और छह और चार साल की दो छोटी-छोटी बेटियां थी.
अब लीलू त्यागी ने अपने ही बड़े भाई की पत्नी से घरवालों की रज़ामंदी से शादी कर ली और उनकी बच्चियों को भी एक पिता की तरह अपना लिया. सबने लीलू के इस क़दम की बड़ी तारीफ़ की. इसके बाद एक रोज़ गुज़र गए और तब लीलू ने अपना दूसरा वार किया. उसने बेटी की तरह अपनाई गई अपनी ही एक भतीजी पायल की ज़हर देकर जान ले ली. और तब भी किसी को इस मौत पर कोई शक नहीं हुआ. फिर पायल की मौत के तीन साल बाद उसकी बड़ी बहन पारुल की बारी आती है. एक रोज़ लीलू की बीवी और पारुल की मां कहीं बाहर गई थी और मौका देख कर लीलू ने पायल की गला घोंट कर जान ले ली और फिर अपने उसी दरोगा और उसके नौकर की मदद से उसकी लाश भी नहर में फेंक दी.
अपने पिता सुधीर त्यागी की तरह पारुल की लाश भी कभी नहीं मिली. लेकिन इससे पहले कि लोग उसकी गुमशुदगी पर और चर्चा करते, लीलू त्यागी ने हवा उड़ा दी कि पारुल का किसी लड़के से अफ़ेयर था और वो अपनी मर्ज़ी से उसके साथ कहीं चली गई. तब लोक लाज के डर से घरवालों ने भी इस बात पर चुप्पी साध लेना ही ठीक समझा और इस तरह चार सालों में वो तीन क़त्ल कर चुका था. सबसे पहले अपने बड़े भाई का और फिर उनकी दो बेटियों का.
इस तरह लीलू त्यागी ने अपने बड़े भाई का पूरा परिवार ख़त्म कर दिया. और अब उसके निशाने पर थे उसके एक और भाई बृजेश त्यागी और उसके बेटे ऋषु त्यागी और नीशू त्यागी. करीब आठ साल पहले यानी 2013 को एक रोज़ बृजेश त्यागी का बेटा नीशू त्यागी अपने घर से कहीं गायब हो गया,और फिर कभी नहीं लौटा. तब तो किसी को कुछ पता नहीं चला. लेकिन अब ये राज़ खुला है कि उसे भी उसके इसी सीयिरल किलर चाचा नीलू त्यागी ने ही अगवा कर मार डाला था और उसकी लाश भी नहर में फेंक दी थी. फिर इसी तरह सबसे आख़िर में उसने बृजेश त्यागी के दूसरे बेटे ऋषु त्यागी का क़त्ल किया. आपको जानकर अफ़सोस होगा कि जब लीलू ने अपने बड़े भाई के पहले बेटे नीशू का क़त्ल किया था, तो उसके जाने के ग़म में उसकी मां यानी लीलू की भाभी का दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया था.
इस तरह लीलू त्यागी पिछले बीस सालों में एक-एक कर अपने ही परिवार के पांच लोगों का क़त्ल कर चुका था और अब शायद उसका अगला निशाना उसका एक और बड़ा भाई बृजेश त्यागी हो सकता था. लेकिन इससे पहले कि बृजेश की बारी आती, क़ातिल लीलू की असलित सामने आ गई. अब सवाल ये है कि आख़िर लीलू ने इतने सालों तक इतनी खामोशी से इतने सारे क़त्ल क्यों किये? क़त्ल और वो भी अपनों के? तो इसका जवाब है कि लीलू त्यागी की नज़र अपने ही परिवार की पुश्तैनी संपत्ति पर थी. त्यागी परिवार के पास मुरादनगर में करीब तीन करोड़ रुपये की जायदाद थी और उसे डर था कि अगर ये जायदाद तीन भाइयों के हिस्से में बंट गई, तो उसे ज़्यादा कुछ भी नहीं मिलेगा. वो ये जायदाद सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने और अपने इकलौते बेटे के नाम करवाना चाहता था. बस यही पूरी की पूरी जायदाद हड़पने के लिए लीलू त्यागी लगातार ये क़त्ल करता रहा. शुरू से इन क़त्ल में रिटायर्ड दारोगा ने उसका साथ दिया, जिसके बदले में लीलू उसे तीन से चार लाख रुपये दिया करता था.