
180 साल पुरानी बात है पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन शहर में अपना सामान बेचने आने वाले किसान अचानक गायब होने लगे । ये सभी किसान लिस्बन के बाहरी इलाकों से लिस्बन के बाजार में फल और सब्जी बेचने आया करते थे। लिस्बन में आने के लिए ये एक पुल का इस्तेमाल किया करते थे जिसकी ऊंचाई करीब 213 फुट थी।
हालांकि पुलिस को समय-समय पर उस पुल के नीचे लोगों की लाशें मिला करती थीं जिन्हें पुलिस कुछ वक्त रखने के बाद अंतिम संस्कार कर दिया करती थी। पुलिस को लगता था कि पुलिस के नीचे मिलने वाली लाशें उन लोगो की हैं जिन्होंने पुल से कूदकर खुदकुशी की है। दरअसल पुलिस को खुदकुशी करने की एक वजह भी समझ आती थी। वो वजह ये थी कि साल 1836 से ये लाशें मिलने का सिलसिला शुरु हुआ था और करीब इसके 16 साल पहले साल 1820 में पुर्तगाल में इतनी ज्यादा मंदी आ गई थी कि बड़े-बड़े फैक्ट्री मालिकों तक ने खुदकुशी कर ली थी।
लोगों के हालात इस मंदी के कई साल बीत जाने के बाद भी ठीक नहीं हुए थे । पुलिस को लगता था कि 16 साल बाद भी मंदी का ही असर किसानों पर पड़ रहा है जिसकी वजह से वो खुदकुशी कर रहे हैं । हालांकि पुलिस में शिकायत करने वाले उनके परिजन पुलिस को जोर देकर कहते थे कि मरने वाले के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी और वो अपनी जिंदगी से खुश थे लेकिन पुलिस लकीर की फकीर बनी हुई थी और वो परिवार के लोगों की बातें नजरअंदाज कर रही थी।
साल 1836 से शुरु हुआ लाशें मिलने का सिलसिला बंद ही नहीं हो रहा था । साल 1837, 1838, 1839 में भी पुल के नीचे लाशें मिल रही थीं । पुलिस ने कभी इस बात की भी जहमत नहीं उठाई कि वो लाशों का ठीक तरह से परीक्षण ही करा ले ताकि मौत से पहले मरने वाले के साथ क्या हुआ था उसका पता चल सके ।
ये भी कह सकते हैं कि उस वक्त विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की होगी कि मौत की वजह का पता चल सके। हालांकि मामले की जांच करने वाले पुलिसवालों के दिमाग के एक कोने में ये भी अंदेशा घर कर गया था कि कहीं इतने किसानों की मौत के पीछे कोई सीरियल किलर तो नहीं है लेकिन पुलिस ने मामले की जांच करने से ज्यादा पुल को बंद करने पर जोर दिया।
आखिरकार साल 1840 में पुल को आने-जाने के लिए बंद कर दिया गया। पुल के बंद होने के साथ ही लाशें मिलने का सिलसिला भी बंद हो गया। अब तो पुलिस की थ्योरी पर मोहर लग गई कि तंगी की वजह से ही लोग खुदकुशी कर रहे थे। हालांकि पुलिस की ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रह सकी। पुल के नीचे मिलने वाली लाशों का सिलसिला बंद हुआ तो अब लिस्बन और उसके आसपास के इलाके में लूट की वारदात बढ़ गई। लोगों के घरों में हथियारबंद लुटेरे घुस आते और फिर लूटपाट करने के बाद हत्या कर फरार हो जाते।
ऐसी कई वारदात ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था और पुलिस उस गैंग को जल्द से जल्द पकड़ना चाहती थी जो इस तरह की वारदात को अंजाम दे रहा था। पुलिस ने अपना जाल बिछाना शुरु किया और जल्द ही पुलिस के हत्थे 30 साल का एक आदमी चढ़ा । पूछताछ में उसने अपना नाम डिओगो एल्वस बताया, उसने बताया कि वो मूल तौर पर स्पेन का रहने वाला है लेकिन 19 साल की उम्र में ही लिस्बन काम ढूंढने आ गया था।
उसने ये भी कबूल किया कि वो अपने गैंग के साथ मिलकर लूट की वारदात को अंजाम दे रहा था। हालांकि पूछताछ करने वाले पुलिसवालों को लग रहा था कि डियोगो अधूरा सच ही बता रहा है और उसके जहन में कई और राज़ छिपे हुए हैं । पुलिस ने डिओगो के साथ सख्ती की और जब उसने मुंह खोलना शुरु किया तो उसकी कहानी सुनने वाले पुलिसवालों के ही हाथ पांव ठंडे पड़ गए।
डिओगो ने बताया उसका जन्म साल 1810 में स्पेन के एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन बेहद ही तंगहाली में गुजरा । मां-बाप उससे छोटा-मोटा काम कराते रहते थे और पढ़ने लिखने के लिए उसे स्कूल नहीं भेजा गया। जब वो 19 साल का हुआ तो उसके पिता ने उसे काम के लिए लिस्बन भेज दिया। लिस्बन आने के बाद डिओगो लोगों के घरों में काम करने लगा। लिस्बन आने के कुछ साल बाद ही डिओगो की मां की मौत हो गई जिसके वो बेहद करीब था।
मां की मौत के बाद डिओगो ने शराब पीना और जुआ खेलना शुरु कर दिया और इसी दौरान वो ऐसे लोगों के संपर्क में भी आया जो छोटी-मोटी वारदात करते रहते थे। छोटी मोटी वारदात कर के भी वो अच्छी जिंदगी जी रहे थे और उन्हें लोगों को घरों में काम करने की भी जरुरत नहीं थी। इसी बीच डिओगो की मुलाकात एक महिला से भी हुई जिससे उससे प्यार हो गया।
कहा तो यही जाता है कि इस महिला से मुलाकात के बाद ही डिओगो ने अपराध की दुनिया में कदम रखा क्योंकि इसी औरत ने डिओगो को कहा था कि जुर्म से जल्दी और ज्यादा पैसा कमाया जा सकता है । इसके बाद डिओगो ऐसी जगह की तलाश करने लगा जहां से लोगों को आसानी से लूटा जाए और किसी को शक भी न हो । डिओगे की सबसे पहली नौकरी उसी पुल के पास के एक मकान में लगी थी जहां से किसान लिस्बन शहर में आया जाया करते थे।
अंधेरा घिरने के साथ ही लिस्बन से अपने गांव लौटने वाले किसानों की तादाद में कमी आने लगती थी और रात ज्यादा घिर आने पर तो कई लोग अकेले ही वापस लौटते थे। डिओगे के दिमाग में यही ख्याल आया कि वो देर रात लौटने वाले किसानों को अपना निशाना बनाएगा । 1836 में जब उसकी उम्र 26 साल थी तब उसने अपना पहला कत्ल किया था।
डिओगे पुल के पास छिपकर अपने शिकार का इंतजार करता और फिर उसे काबू में करने के बाद उसके पैसे छीन लिया करता था। लुटने वाला शख्स पुलिस के पास न जा सके और वो कभी पकड़ा न जाए इसके लिए डिओगो अपने शिकार को 60 मीटर ऊंचे पुल से नीचे फेंक दिया करता था । पुल से गिरते ही उसकी मौत हो जाती और डिओगे अगली वारदात की तैयारी करने लगता।
1836 से लेकर 1840 के दौरान डिओगे ने पुल से गुजरने वाले 70 लोगों को अपना निशाना बनाया और लूटपाट करने के बाद उन्हें पुल से धक्का देकर उनका कत्ल कर डाला। डिओगो शायद कभी पकड़ा भी नहीं जाता अगर लाशें मिलने की वजह से पुल को लोगों के आनेजाने के लिए बंद नहीं किया जाता।
डिओगो को अपने अपराध के लिए फांसी की सजा सुनाई गई। डिओगो उन चंद लोगों में था जिन्हें पुर्तगाल में फांसी की सजा हुई क्योंकि डिओगो की मौत के कुछ साल बाद ही पुर्तगाल में फांसी की सजा को बंद कर दिया गया।
डिओगो की मौत के बाद उसके सिर को काटा गया और एक केमिकल के जार में रखा गया। इसके पीछे की वजह ये थी कि वैज्ञानिक डिओगो का दिमाग पढ़ना चाहते थे। वो जानना चाहते थे कि आखिर एक सीरियल किलर के दिमाग में आम इंसान से ऐसा क्या अलग होता है कि वो किसी को भी मौत के घाट उतारने से पहले उफ्फ तक नहीं करता।
आज भी डिओगो का सही सलामत सिर लिस्बन की एक यूनीवर्सिटी की लैब में रखा हुआ है। यानि 180 साल बाद भी एक सीरियल किलर का चेहरा आप न केवल देख सकते हो बलकि पढ़ भी सकते हो ।