
Kota Factory Suicide Trend: इन दिनों हर तरफ कोटा की चर्चा हो रही है। खासतौर पर कोटा में लगातार छात्रों के खुदकुशी के बढ़ते मामलों की वजह से लोग बेहद परेशान हैं। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर पढ़ने के लिए अपना घर बार छोड़कर कोटा आने वाले छात्रों में ये बीमारी कब कैसे और क्यों लग गई। जो छात्र जिंदगी की लड़ाई में कामयाब होने का सपना संजोकर यहां तक पहुँचते हैं वो आखिर जिंदगी में उम्मीदों की ये लड़ाई क्यों हारकर मौत को गले लगाने लगे।
मंदिर की मनोकामना दीवार
सच कहा जाए तो कोटा में छात्र बेहद दबाव में हैं। और कोटा के छात्रों का ये दबाव खुलेआम दिखाई भी पड़ रहा है। कोटा में एक मंदिर है राधा कृष्ण मंदिर। इस मंदिर की दीवार को मनोकामना की दीवार भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां लोग अपनी मनोकामना लिखते हैं और वो पूरी भी हो जाती है। इसके अलावा कोटा में स्टूडेंट हेल्पलाइन नंबर पर कई छात्र अपने मन की हालत और अपनी परेशानियों से निबटने के लिए कॉल करते हैं। हेल्पलाइन में कॉल करने वाले छात्रों में से करीब करीब 45 ऐसे छात्रों की पहचान की गई है जिनका कहना है कि उनका अब और जीने का मन नहीं करता।
छात्रों में दबाव की वजह का खुलासा
ये बात गौर करने वाली भी है कि बीती 27 अगस्त को इसी कोटा में कुछ ही घंटों के भीतर दो छात्रों ने खुदकुशी कर ली थी। और ये खबर मीडिया में काफी सुर्खियों में भी रही। ऐसे में ये भी कहा जा रहा है कि मीडिया की खबरों की वजह से भी छात्र दबाव महसूस कर रहे हैं। लेकिन कोटा में रहने वाले या कोटा पर जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं की वजह मीडिया नहीं बल्कि उनके अपने परिवार की उम्मीदों का दबाव उन्हें इस रास्ते पर जाने को मजबूर कर देता है।
दीवार पर लिखते हैं छात्र मन की बात
कोचिंग के हब के तौर पर मशहूर हो चुके कोटा के तलवंडी इलाके में मौजूद राधा कृष्ण मंदिर में हर रोज शाम के वक़्त सैकड़ों छात्र जमा होते हैं। इनमें ज़्यादातर NEETकी तैयारी करने वाले छात्र होते हैं। और उसी मंदिर के मुख्य हाल से लगी एक सफेद दीवार है। जो वहां के छात्रों में मनोकामना दीवार के नाम से पहचानी जाती है। और उसी दीवार पर छात्र अपने मन की वो बात लिख देते हैं जिसके बारे में वो शायद भगवान से मनोकामना के तौर पर मांगने आते हैं। उसी दीवार पर एक छात्र ने लिखा है, मेरे माता पिता की रक्षा करना प्रभु, मेरी एक छोटी सी मनोकामना को पूरा करना और मेरी वजह से कोई दुखी न रहे, प्रभु एक इच्छा है कि मेरी वजह से किसी को कष्ट न हो। उसी दीवार पर एक और जगह लिखा हुआ था, प्लीज गॉड मुझसे ये हो नहीं सकता, मेरे लिए इसे पॉसिबिल कर दीजिए।
दीवार पर झकझोरने वाली इबारतें
दीवार पर लिखी ये इबारतें किसी का भी दिल झकझोर सकती हैं। साथ ही वो तस्वीर दिखा देती हैं कि कोटा में अपनी आगे की पढ़ाई करने पहुँचे कंपटीशन की तैयारी कर रहे छात्रों की मन की हालत को भी बयां कर देती है। इस तरह की इबारतों से राधा कृष्ण मंदिर की वो मनोकामना दीवार पटी पड़ी है। सबसे झकझोरने वाला तथ्य ये है कि इस साल कोटा अब तक दो दर्जन छात्रों के शव देख चुका है। ये सरकारी आंकड़ा है। और इसी आंकड़े की एक झलक और भी ज़्यादा परेशान करने वाली है कि कोटा में हर दसवें दिन एक आत्महत्या हो जाती है।
आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या
हालांकि कोटा में रहने वाले छात्रों की बातों पर यकीन किया जाए तो आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या बताई गई गिनती से कहीं ज्यादा है। छात्रों ने ये तर्क इसलिए दिया क्योंकि दावा है कि कई छात्रों ने खुदकुशी की घटना अपने अपने घरों में जाकर भी अंजाम दी हैं। यानी वो गिनती यहां नहीं गिनी जा सकती।
माता पिता का होता है प्रेशर
इंडिया टुडे के संवाददाता ने जब कोटा में पढ़ाई कर रही छात्रा से पूछा कि छात्र इतने दबाव में क्यों हैं, उसका जवाब हैरान करने वाला है, क्योंकि उसका कहना था कि ये प्रेशर माता पिता का प्रेशर है जिसे छात्र अपने ऊपर ले लेता है और फिर वो सहन नहीं कर पाता। लड़की ने बताया कि जब हम घरों पर होते हैं तो पढ़ाई का कोई प्रेशर महसूस नहीं होता लेकिन जैसे ही हम कोटा जैसी जगहों पर जाते हैं तो हमें अपने माता पिता की सूरतें और उनकी उम्मीदों का दबाव महसूस होने लगता है। लड़की का कहना है कि यहां ज्यादातर छात्र 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई करते हैं और अपनी इस पढ़ाई के चक्कर में वो कई चीजों से दूर हो जाते हैं। लेकिन जब हम स्कोर नहीं कर पाते तो हम अपने माता पिता के बारे में सोचकर बुरा महसूस करते हैं, क्योंकि सारे माता पिता यहां बच्चों को भेजते हैं तो बहुत पैसा भी खर्च करते हैं।
छात्रों के पास वक्त ही नहीं है
एक दूसरे छात्र ने यहां के ज़्यादातर छात्रों का हाल कुछ इस तरह से बताया तो महसूस हुआ कि छात्रों के पास तो बिलकुल वक्त ही नहीं है। उसने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि आमतौर पर छात्र सुबह 7 बजे के आस पास सोकर उठता है और फिर दोपहर 12 बजे तक सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं करता। इस दौरान उसे क्लासेज, एक्स्ट्रा क्लासेज, रिवीजन, पेपर सॉल्व और डिस्कशंस शामिल हैं। यहां तक की कई बार तो छात्रों को खाना तक खाने का वक्त नहीं मिलता। इसके अलावा वीकली टेस्ट भी छात्रों की मुश्किलों को बढ़ा देते हैं।
छात्रों का आत्मविश्वास डांवाडोल
और इन सबके बावजूद अगर उसका स्कोर कम होता है तो उसका हौसला और आत्मविश्वास पूरी तरह से हिल जाता है। कई बार तो टीचर की बातें भी हौसला तोड़ देती हैं, क्योंकि उन टीचरों के लिए आईआईटी, एम्स या सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बिना दुनिया होती ही नहीं। यहां तक कि ये टीचर एनआईटी को निचली रैंक का संस्थान मानकर उसकी उपेक्षा करने लगते हैं।
नशे के आदी होने लगे छात्र
उस छात्र का कहना है कि आत्म हत्या करने वाले छात्रों में से एक ने वीकली टेस्ट में काफी कम अंक हासिल किए थे और उसके बाद वो उसका प्रेशर बर्दाश्त नहीं कर सका। छात्र का ये भी कहना है कि अपने इस प्रेशर को खत्म करने या उससे लड़ने के लिए कुछ छात्र तो नशे और सिगरेट का सहारा लेने लगते हैं और देखते ही देखते उसके आदी हो जाते हैं।
छात्रों को बचाने की नई मुहिम
इसी बीच एक कोचिंग संस्थान के मालिक नितिन विजय सर का कहना है कि अगर कोई छात्र 12 घंटे पढ़ाई कर सकता है तो उसका सफल होना लाजमी है। लेकिन छात्रों और माता पिता की उम्मीदें ही उन्हें इस मुश्किल फैसले तक ले जाती हैं। लेकिन कोचिंग संस्थान के मालिक ने एक बड़ी ही मार्के की बात कही, उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के बाद एक अजीब फितरत देखने को मिली है। आमतौर पर ज़्यादातर छात्र जब कड़ी मेहनत के बाद भी कामयाब नहीं हो पाते तो सारा प्रेशर अपने ऊपर ले लेते हैं और यहीं से उनके रास्ते बदल जाते हैं। बताया जा रहा है कि कोटा में करीब तीन हजार से ज्यादा हॉस्टल हैं और हजारों की तादाद में पीजी। ऐसे में हॉस्टल और कोचिंग सेंटर एसोसिएशन ने फैसला किया है कि हर कमरे में मोटिवेशनल पोस्टर लगवाना अनिवार्य है।